टिमुरू (तिमूर) उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में बहुतायत से पाया जाने वाला वानस्पतिक औषधिय गुणों से भरपूर पौधा है।Timur एक ऐसा पौधा है जिसकी जड़,तना, पत्ती, कांटेदार डण्डा, फूल फल व बीज सभी औषधि में काम आती है ।
टिमुरू (तिमूर) को अलग -अलग जगहों पर अलग अलग नामों से जाना जाता है। जो निम्न प्रकार है-
- वैज्ञानिक परिवार – रूटेसी (Rutaceae)
- वैज्ञानिक नाम – जेंथेजाइलम अरमेटम
3.(Zanthoxylum Armatum) है. - कुमाऊँ में – तिमुर, तिम्बर
- गढ़वाल में टिमरू,
- संस्कृत में तुम्वरु, तेजोवटी,
- जापानी में किनोमे,
- नेपाली में टिमूर
- यूनानी में कबाब-ए-खंडा,
- हिंदी में तेजबल, नेपाली धनिया
आदि नामों से जाना जाता है. दरअसल 8-12 मीटर ऊंचाई के तिमूर के पेड़ का हर हिस्सा औषधीय गुणों से युक्त है. तना, लकड़ी, छाल, फूल, पत्ती से लेकर बीज तक दिव्य औषधीय गुणों से भरपूर है.
उत्तराखण्ड देवभूमि में पाई जाने वाली ढेरों वनस्पतियों में से ज्यादातर औषधीय एव जड़ी बूटियों के गुणों से युक्त हैं। जिसे हमारे पूर्वजों ने उपयोग में लाया था, गाँव-देहात में रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली इन वनस्पतियों के इस्तेमाल के बारे में लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी के अपने ज्ञान से जानते थे। हमारे पूर्वज भी इन वनस्पतियों का जड़ीबूटियों का बहुत प्रयोग करते है।
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इन्हीं में एक है टिमुरू (तिमूर). जब टूथपेस्ट नहीं हुआ करता था या वह गाँवों के लिए सुलभ नहीं था तब तिमूर को दातून के तौर पर खूब इस्तेमाल किया जाता था. उत्तराखण्ड के सुदूरवर्ती पहाडी इलाको में तिमूर या अखरोट के पेड़ की छाल या डंडी से दातुन किया करते थे। हमारे दादा-दादी ने कभी भी टूथपेस्ट का इस्तेमाल नही किया। उन्होंने हमेशा ही तिमूर की छाल या डंडी या पत्तो से मंजन किया। और नतीजा ये था कि उनके दाँत कभी खराब नहीं हुए। लगभग दांतो की समस्याओं का पूर्ण निराकरण इस औषधिय पौधे के लगातार इस्तेमाल करने से खत्म किया जा सकता है। टिमुरू (तिमूर) कई गुणों से भरपूर है ।
टिमुरू (तिमूर) पायरिया रोग को भागता है और इसकी दातून से दन्त रोगों का खात्मा किया जा सकता है. इसकी पट्टियों को बारीक पीसकर उससे भी दांत साफ़ किये जा सकते हैं. इसके बीज मुंह को तरोताजा रखने के अलावा पेट की बीमारियों के लिए भी फायदेमंद हैं.
Timur की लकड़ी हाई ब्लड प्रेशर में बहुत कारगर है, इसकी कांटेदार लकड़ी को साफ़ करके हथेली में रखकर दबाया जाए तो ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. इसकी लकड़ी काँटेदार, दाने वाली होती है जो हाथों में दबाने पर प्रेशर को नियंत्रित करती है।
टिमुरू (तिमूर) की तांत्रिक मान्यता
Timur की लकड़ी को उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में आज भी तांत्रिक रूप से कई मान्यता के रूप में अपनाया जाता है। आज भी Timur की लकड़ी को दरवाजो के ऊपर( मोल) में लटकाया जाता है। जिसमे ये मान्यता है कि भूत – पिचाश एवम बुरी आत्माओं के घर के अंदर परिवेश नही कर पाते है। ग्रामीण क्षेत्रों आज भी ऐसा माना जाता है कि Timur की लकड़ी को रखने से घर मे सुख शांति बनी रहती है। एवम नकारात्मक ऊर्जा नही आती है।
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उत्तराखण्ड में Timur की लकड़ी को अध्यात्मिक कामों में भी बहुत महत्त्व दिया जाता है, Timur की लकड़ी को शुभ माना जाता है. जनेऊ के बाद बटुक जब भिक्षा मांगने जाता है तो उसके हाथ में Timur का डंडा दिया जाता है.बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर में प्रसाद के रूप में Timur (इसकी टहनी) चढ़ाया जाता है। Timur की लकड़ी को मंदिरों, देव थानों और धामों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है. उत्तराखंड में तपस्य या तप करने वाले साधुओं के पास Timur का डंडा होता है। Timur के डंडे से नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है।
बुखार, अपच और हैजा के उपचार में इनका उपयोग एक खुशबूदार टॉनिक के रूप में किया जाता है। 7 – 14 बीजों का काढ़ा फोड़े-फुंसियों, गठिया, घाव, जठरशोथ, सूजन आदि के उपचार में प्रयोग किया जाता है। दांत दर्द से राहत पाने के लिए बीजों का पेस्ट दांतों के बीच लगभग 10 मिनट तक लगाया जाता है। पत्तियों को एक मसाला के रूप में उपयोग किया जाता है। पत्तियों का एक पेस्ट घाव के लिए बाहरी रूप से लगाया जाता है। फल, शाखाएँ और काँटे मादक और रूखे माने जाते हैं। वे दांत दर्द के लिए एक उपाय के रूप में उपयोग किए जाते हैं।