Dehradun News : चुन्नी गांव के पास मधु गंगा पर स्थित मदमहेश्वर जलविद्युत परियोजना ने महज दो दिन में 14,000 यूनिट बिजली पैदा कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इस परियोजना से 200 से अधिक गांवों को काफी लाभ मिलने की उम्मीद है।
मदमहेश्वर जलविद्युत परियोजना का अवलोकन
मूल रूप से 2008 में निर्मित 15 मेगावाट की मदमहेश्वर जलविद्युत परियोजना अब पूरी हो चुकी है। इसके बाद बिजली उत्पादन का परीक्षण चरण शुरू हो गया है। पिछले शनिवार और रविवार को परियोजना ने क्रमश: 8,000 और 6,000 यूनिट बिजली सफलतापूर्वक पैदा की, जिसे बाद में यूपीसीएल ग्रिड को भेज दिया गया। इस सप्ताह, शेष दो टर्बाइनों से अतिरिक्त बिजली उत्पादन शुरू हो जाएगा। परियोजना के पूर्ण वाणिज्यिक संचालन में आने के बाद, उत्तराखंड जल विद्युत निगम को यूपीसीएल के साथ अपने अनुबंध के तहत धन मिलना शुरू हो जाएगा।
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स्थानीय समुदायों को लाभ
इस परियोजना से रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ घाटी, मदमहेश्वर घाटी, तुंगनाथ घाटी और कालीमठ घाटी के 200 से अधिक गांवों को लाभ मिलेगा। उत्पादित बिजली से कम वोल्टेज और अनियमित बिजली आपूर्ति जैसी समस्याएं दूर होंगी, जिससे इन क्षेत्रों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
सबस्टेशन निर्माण की स्थिति
उत्पादित बिजली को PIDCUL द्वारा रुद्रपुर में प्रस्तावित 220 किलोवाट सबस्टेशन से जोड़ने की योजना है। हालांकि, लंबे समय से चल रहे भूमि विवाद के कारण इस सबस्टेशन के निर्माण में देरी हुई है। इसके बावजूद, रुद्रपुर गांव की सीमा से खंडूखाल तक बिजली लाइन सफलतापूर्वक बिछा दी गई है।
अधिकारियों के बयान
उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डॉ. संदीप सिंघल ने पुष्टि की कि प्रारंभिक परीक्षण के हिस्से के रूप में पहले टरबाइन से दो दिनों में 14,000 यूनिट बिजली का उत्पादन किया गया। जल्द ही पूर्ण पैमाने पर वाणिज्यिक बिजली उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है, जिससे क्षेत्र में बिजली आपूर्ति में काफी वृद्धि होगी।
तकनीकी विवरण और भविष्य के अनुमान
इस परियोजना में तीन टर्बाइन शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता पाँच मेगावाट है। सभी टर्बाइनों के चालू होने के साथ, परियोजना का लक्ष्य अगले वर्ष से सालाना 10.1 करोड़ यूनिट बिजली पैदा करना है। 2008 में शुरू हुई इस परियोजना की शुरुआती निर्माण लागत 208 करोड़ रुपये आंकी गई थी। हालाँकि, 2013 की आपदा ने काफी नुकसान पहुँचाया, जिससे 2016 तक प्रगति रुक गई, जब पुनर्निर्माण फिर से शुरू हुआ, जिससे कुल लागत 352 करोड़ रुपये हो गई।
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यह प्रगति क्षेत्र के बिजली के बुनियादी ढांचे में एक बड़ा सुधार दर्शाती है, जिससे कई गाँवों को विश्वसनीय बिजली मिलने का वादा किया गया है और क्षेत्र में आगे के विकास को बढ़ावा मिलेगा।