विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच में गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी की 4,000 हेक्टेयर से अधिक सरकारी जमीन की अवैध बिक्री से जुड़े एक बड़े भूमि घोटाले का खुलासा हुआ है। राज्य सरकार के स्वामित्व वाली यह जमीन धोखाधड़ी से कई पक्षों को बेची गई। एसआईटी की रिपोर्ट में राजस्व अधिकारियों की संलिप्तता पर सवाल उठाए गए हैं, जिसके चलते पांच नए मामले दर्ज किए गए हैं।
एसआईटी की रिपोर्ट के अनुसार, गोल्डन फॉरेस्ट के पास विकास नगर, मिसरास पट्टी, मसूरी और धनोल्टी जैसे इलाकों में सरकारी जमीन का एक बड़ा हिस्सा है। सरकारी जमीन होने के बावजूद, इसे आधिकारिक तौर पर कब्जे में नहीं लिया गया, जिससे अवैध अतिक्रमण और बिक्री को बढ़ावा मिला। राजस्व विभाग ने पहले जमीन के कुछ हिस्सों को विभिन्न सरकारी विभागों को आवंटित किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी है।
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एसआईटी के विशेष कार्यकारी अधिकारी अजब सिंह चौहान ने खुलासा किया कि गोल्डन फॉरेस्ट की अधिकांश जमीन को साजिश के तहत कई बार बेचा गया था।
पिछले मालिकों या गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी की आपत्तियों के बिना जमीन को नए खरीदारों को बेचा गया, जो मिलीभगत का संकेत देता है। एसआईटी का मानना है कि इन धोखाधड़ी वाले लेन-देन के पीछे एक सिंडिकेट का हाथ था, जो राज्य को धोखा देने के इरादे से एक ही जमीन को अलग-अलग खरीदारों को बेच रहा था।
एसआईटी ने राजीव दुबे, विनय सक्सेना, रवींद्र नेगी, संजय कुमार, रेणु पांडे, अरुण कुमार और संजय घई सहित इसमें शामिल प्रमुख व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जांच जारी है क्योंकि सरकार इस बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी से हुए नुकसान का आकलन कर रही है।