हरिद्वार/ डरबन। अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन जी महाराज कहते हैं कि नवरात्रि का आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है. माँ सिद्धिदात्री नवदुर्गा का अंतिम रूप हैं, जिन्हें सभी सिद्धियों की दाता माना जाता है। इनकी आराधना से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं और जीवन में सफलता, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
गौरतलब है कि नागरी प्रचारिणी सभा, विष्णु मंदिर डरबन साउथ अफ्रीका में चल रहे शारदीय नवरात्र महोत्सव में नवमी तिथि पर कन्या पूजन श्रद्धाऔर उल्लास के साथ किया गया। सनातनी परंपराओं का निर्वहन करते हुए निरंजनी अखाड़ा मायापुर के अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन महाराज ने विधि विधान से कन्यापूजन करने के उपरांत उपहार भेंट कर सम्मानित किया। इसके साथ ही उन्होंने श्रीमद् देवीभागवत महापुराण कथा का गुणगान करते हुए मां सिद्धिदात्री के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ हैं। सिद्धियाँ। माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में सक्षम हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव को इनकी कृपा से ही ये सिद्धियां प्राप्त हुई थीं। इन्हीं की कृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ और इसी कारण वे संसार में अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस दिन जो साधक पूर्ण निष्ठा से शास्त्रीय विधि-विधान से साधना करता है, उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। सिद्धियाँ। उसके लिए ब्रह्मांड में कुछ भी अप्राप्य नहीं रहता, उसे हर जगह विजय प्राप्त करने की शक्ति प्राप्त होती है।
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माँ का स्वरूप
सिंह पर सवार, कमल के फूल पर विराजमान, माँ सिद्धिदात्री का चार भुजाओं वाला बहुत ही दिव्य स्वरूप है। उनके पास एक चक्र है उनके दाहिने हाथ में गदा, बाएं हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का फूल है। सिद्धिदात्री को देवी सरस्वती का एक रूप भी माना जाता है जो सफेद वस्त्र से सुसज्जित हैं और अपने भक्तों को अपनी कृपा से मंत्रमुग्ध कर देती हैं। महान ज्ञान और मधुर वाणी।
पूजा का फल
इनकी पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को यश, बल, वैभव और धन की प्राप्ति होती है। माँ भगवती का स्मरण, ध्यान और पूजन करने से हमें इस संसार की निरर्थकता का बोध होता है और वह हमें वास्तविक, परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाता है।
मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
स्वामी रामभजन वन जी महाराज बताते हैं कि इसका वर्णन इस प्रकार है कथा है कि जब राक्षस महिषासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब वहां उपस्थित सभी देवताओं से एक प्रकाश उत्पन्न हुआ और उस प्रकाश से एक दिव्य शक्ति उत्पन्न हुई, जिसे मां सिद्धिदात्री कहा जाता है दुर्गासप्तशती में उल्लेख है कि देवी का मुख भगवान शिव के तेज से, देवी के बाल यमराज से, वक्षस्थल विष्णु जी से, कमर इंद्र से, जंघा वरुण से, दोनों पैर ब्रह्मा जी से, पैर की उंगलियां सूर्य से, अंगुलियां यमराज से, तथा दोनों पैर भगवान शिव के तेज से निर्मित हुए। वायुदेव से देवी के हाथ, कुबेर से देवी की नाक, प्रजापति से देवी के सुंदर दांत। सभी देवताओं ने अपनी शक्ति को एकत्रित किया और देवी को हथियार प्रदान किए। इस तरह मां ने महिषासुर का अंत किया।