उत्तराखंड में पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा अपने कार्यकाल को दो साल बढ़ाने की मांग को लेकर चल रहे विरोध के बावजूद सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाएगा। पंचायत अधिनियम में इस तरह के विस्तार का प्रावधान नहीं है।
पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल नवंबर में समाप्त होने वाला है, जबकि 7,795 ग्राम पंचायतों, 400 जिला पंचायत सदस्यों और क्षेत्र पंचायत और वार्ड सदस्यों के लिए चुनाव दिसंबर में होने हैं। उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन के बैनर तले पंचायत प्रतिनिधियों ने मंगलवार को विरोध में राज्य भर के 89 ब्लॉक कार्यालयों पर तालाबंदी की।
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ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान मांगें
संगठन का तर्क है कि कोविड-19 महामारी ने 2020-21 में पंचायत बैठकों को बाधित किया, जिससे गांव, क्षेत्र और जिला पंचायत क्षेत्रों में विकास कार्य प्रभावित हुए। उनका कहना है कि अतीत में भी पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाया गया है, जैसे कि 2001 में जब कार्यकाल एक साल, तीन महीने और 28 दिन बढ़ाया गया था।
सरकार का रुख
पंचायती राज विभाग के सचिव चंद्रेश कुमार यादव ने दोहराया कि पंचायती राज अधिनियम पंचायतों के कार्यकाल को बढ़ाने की अनुमति नहीं देता है। सरकार समय पर चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है। पंचायतों के परिसीमन के बाद आरक्षण किया जाएगा और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव तय कार्यक्रम के अनुसार होंगे।
विरोधाभासी निर्देश
दिलचस्प बात यह है कि पंचायती राज मंत्री सतपाल महाराज ने हाल ही में मुख्य सचिव को पंचायतों के कार्यकाल को दो साल बढ़ाने की संभावना तलाशने का निर्देश दिया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि चुनाव 2027 में हरिद्वार जिले के पंचायत चुनावों के साथ ही कराए जाएं। उन्होंने कहा कि झारखंड और राजस्थान जैसे अन्य राज्यों ने भी इसी तरह के उपाय लागू किए हैं।
चुनाव का दायरा
आगामी चुनाव 7,795 ग्राम प्रधान पद, 95 पंचायत प्रमुख पद, 13 जिला पंचायत अध्यक्ष पद, 58,970 ग्राम पंचायत सदस्य पद, 3,202 क्षेत्र पंचायत सदस्य पद और 400 जिला पंचायत सदस्य पद को कवर करेंगे। राज्य की योजना हरिद्वार को छोड़कर सभी जिलों में ये चुनाव कराने की है।
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संक्षेप में, चल रहे विरोध प्रदर्शनों और विस्तार की मांग के बावजूद, सरकार समय पर पंचायत चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया कानून के अनुसार जारी रहे।