Uttarakhand Municipal Elections Update : नैनीताल हाईकोर्ट ने आज उत्तराखंड में नगर निगम चुनाव कराने में हो रही देरी के मामले में सुनवाई की। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अपर सचिव शहरी विकास नितिन भदौरिया ने कोर्ट को बताया कि नगर निगम चुनाव 25 अक्टूबर तक पूरे हो जाएंगे।
मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट नगर निगम चुनाव समय पर न करा पाने के मामले में दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने अपने पिछले आदेश के अनुसार इन चुनावों को कराने के लिए सरकार की योजना के बारे में पूछा। कोर्ट ने पहले राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति और नगर निगम चुनाव पूरा कराने की समयसीमा के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी थी।
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आज नितिन भदौरिया ने कोर्ट को बताया कि अगस्त के आखिरी या सितंबर के पहले हफ्ते तक राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कर दी जाएगी और 25 अक्टूबर तक चुनाव संपन्न हो जाएंगे। राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने बताया कि लोकसभा चुनाव और उसके बाद मानसून सीजन के कारण निकाय चुनाव में देरी हुई है, क्योंकि राज्य प्रशासन का अधिकांश समय इसी में लगा हुआ है। हालांकि, उन्होंने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि सरकार अब तय समय सीमा तक नगर निगम चुनाव संपन्न कराने के लिए तैयार है।
राज्य चुनाव आयोग ने कहा कि सभी नगर निकायों का कार्यकाल दिसंबर 2023 में समाप्त हो गया था। इसके बाद सरकार ने छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त किए, जिनका कार्यकाल जून 2024 में समाप्त हो गया। सरकार ने चुनाव कराने के बजाय इन कार्यकालों को बढ़ा दिया। इसके अलावा, सरकार ने हाल ही में कई नए नगर निगमों और परिषदों की घोषणा की है, जो चुनाव आयोग के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकती हैं, क्योंकि ये घोषणाएं निकायों के कार्यकाल समाप्त होने के आठ महीने बाद की गईं, जबकि उन्हें दिसंबर 2023 से छह महीने पहले पूरा हो जाना चाहिए था।
यह सुनवाई जसपुर निवासी मोहम्मद अनवर द्वारा दायर एक याचिका से उपजी है, जिन्होंने तर्क दिया कि नगर पालिकाओं और नगर निकायों का कार्यकाल दिसंबर में समाप्त हो गया था, और आठ महीने बिना चुनाव कार्यक्रम के बीत गए हैं। इसके बजाय, सरकार ने अपने नियुक्त प्रशासकों के कार्यकाल को बढ़ा दिया, जिससे जनता को परेशानी हो रही है।
अनवर ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुसार राज्य को किसी निकाय के कार्यकाल की समाप्ति से छह महीने पहले परिसीमन और आरक्षण जैसे मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता होती है, जो नहीं किया गया। अदालत में बार-बार बयान देने के बावजूद, राज्य सरकार चुनाव कराने में विफल रही, जिससे याचिकाकर्ता को नगर निगम चुनावों के शीघ्र संचालन के लिए निर्देश देने के लिए प्रेरित होना पड़ा।