Lala Lajpat Rai Biography in Hindi : 28 जनवरी, 1865 को जन्मे लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति थे। पंजाब के धुडिके के रहने वाले राय एक करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और एक प्रभावशाली लेखक के रूप में उभरे और उन्होंने भारतीय इतिहास के पन्नों पर एक अमिट छाप छोड़ी।
प्रारंभिक जीवन:
Lala Lajpat Rai की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृहनगर में हुई और बाद में उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। प्रारंभ में, उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई में अपनी भविष्य की भूमिका का पूर्वाभास देते हुए, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों में गहरी रुचि प्रदर्शित की।
- Advertisement -
राजनीतिक सक्रियतावाद:
Lala Lajpat Rai उस दौर में सक्रिय राजनीति में आये जब भारत स्व-शासन के लिए उग्र आंदोलनों का गवाह बन रहा था। आर्य समाज और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ उनके जुड़ाव ने स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को मजबूत किया। राय ने विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, भारतीयों के अधिकारों की वकालत की और भेदभावपूर्ण कानूनों का जोरदार विरोध किया।
शिक्षा में योगदान:
राष्ट्र की प्रगति में शिक्षा के महत्व को पहचानते हुए Lala Lajpat Rai ने सक्रिय रूप से शैक्षिक सुधारों को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि एक प्रबुद्ध समाज उत्पीड़न को बेहतर ढंग से समझ सकता है और उसके खिलाफ लड़ सकता है। उनके प्रयासों ने शैक्षणिक संस्थानों के विकास और जागरूकता के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राष्ट्रवादी आंदोलनों में भूमिका:
Lala Lajpat Rai ने राष्ट्रवादी आंदोलन को परिभाषित करने वाली प्रमुख घटनाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया। वह असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन और साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान एक प्रमुख नेता थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल जैसे अन्य दिग्गजों के साथ उनके नेतृत्व ने उन्हें “लाल-बाल-पाल” उपनाम दिया।
साइमन कमीशन से टकराव:
1928 में साइमन कमीशन के साथ लाजपत राय का टकराव विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आयोग में भारतीय प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति के विरोध में उन्होंने लाहौर में एक जुलूस का नेतृत्व किया। शांतिपूर्ण प्रदर्शन उस वक्त हिंसक हो गया जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया. आगामी झड़प में, लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें लगीं, जिससे 17 नवंबर, 1928 को उनकी दुखद मृत्यु हो गई।
- Advertisement -
परंपरा:
लाला लाजपत राय की विरासत भारत की स्वतंत्रता के प्रति लचीलेपन और अटूट प्रतिबद्धता के प्रतीक के रूप में जीवित है। राष्ट्रवादी आंदोलन में उनका बलिदान और योगदान पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। “पंजाब केसरी” या “पंजाब के शेर” के रूप में याद किए जाने वाले लाला लाजपत राय भारतीय इतिहास के इतिहास में साहस और समर्पण के प्रतीक बने हुए हैं।